Thursday, April 24, 2025
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हैरान कर देने वाला मामला! 204 वर्ष पूर्व मरे व्यक्ति की अब होगी 13वीं

आजमगढ़ नामा। मृत्यु के बाद ब्रम्हभोज के बारे में आपने बहुत सुना होगा। लेकिन हम आज एक ऐसे मृत्यु के बाद मृत्यु भोज के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसे सुनकर आप आपको हैरानी होगी। बता दे कि मामला आजमगढ़ जनपद के बरदह थाना क्षेत्र का है। जहां पर 204 साल पहले मृतक व्यक्ति की 13वीं करने का प्लान बनाया जा रहा है। जिसे सुनकर क्षेत्र के लोगों मे कौतूहल देखने को मिला है। लोगों का कहना है कि ऐसा हम लोगों ने जीवन काल में पहली बार देख रहे हैं कि किसी 204 वर्ष पूर्व मरे व्यक्ति की 13वीं की जा रही है । जानकारी के अनुसार बरदह थाना क्षेत्र के गोड़हरा बाजार में एक परिवार के सभी सदस्यों ने 204 वर्ष बाद अपने पूर्वज की तेरहवीं करने का निर्णय लिया है। जिन्हें 1820 में बरतानिया हुकूमत के खिलाफ बगावत करने पर अंग्रेजों ने मारकर जंगल में एक पेड़ से बांधकर छोड़ दिया था। जंगली जानवरों ने उन्हें अपना निवाला बना लिया था। परिजनों के अनुसार गोड़हरा गांव निवासी फकीर सिंह ने 1820 में अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। वरतानिया हुकूमत के खिलाफ बगावत के चलते अंग्रेजों ने सन 1820 में उनको पकड़ने के बाद ऐसी सजा सुनाई कि लोगों की रूह कांप गई थी। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेजों ने फकीर सिंह को मारने के बाद जंगल में पेड़ से बांधकर छोड़ दिया था। जिन्हें जंगली जानवरों ने अपना निवाला बना लिया था। जिसके कारण उनका न तो दाह संस्कार हो पाया था और न ही क्रिया कर्म ही घर वाले कर पाए थे। घर के बड़े बुजुर्गों से यह बातें लोग सुनते चले आ रहे हैं। अब उनकी आठवीं पीढ़ी के प्रमोद सिंह ने 204 साल बाद स्वर्गीय फकीर सिंह की तेरहवीं और अन्य क्रिया कर्म करने का निर्णय लिया है। परिजन किसी अनहोनी की आशंका को मिटाने के लिए और गयाजी पूजन के लिए ज्योतिष विशेषज्ञों के कहने पर अपने पूर्वज स्व. फकीर सिंह की 204 साल बाद शुद्ध एवं त्रयोदशाह का कार्यक्रम रखा है। उनकी तेरहवीं नौ सितंबर को रखी गई है। इसके बाद 204 वर्ष पूर्व मृत आत्मा की पूर्ण शांति के बाद परिजन गया में पिंडदान के लिए अपने गांव से प्रस्थान करेंगे।इस बारे में प्रमोद सिंह ने बताया कि हिंदू धर्म के अनुसार जव तक किसी व्यक्ति का विधि-विधान से क्रिया कर्म न किया जाता है तब तक उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है। उक्त मामले पर पंडित सुजीत तिवारी का कहना है कि यह लोग हमारे पास आए थे। हमने अपने गुरुओं से सलाह ली तो उन्होंने बताया कि बिना तेरहवीं किए कोई भी व्यक्ति गया जाकर पिंडदान नहीं कर सकता है। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। हमारे धर्म शास्त्रों में भी ऐसा लिखा है।

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